ब्लड कैंसर और अन्य बीमारियों के इलाज के लिए किए गए स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट से कैंसर का खतरा नहीं बढ़ता। कई लोग, जिन्होंने 40 साल से भी पहले ट्रांसप्लांट करवाया था, में भी गंभीर म्यूटेशन (डीएनए में बदलाव) नहीं पाए गए। यह नया शोध मरीजों और डॉक्टरों दोनों के लिए राहत की खबर है।
स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट कैसे काम करता है?
हेमाटोपोएटिक स्टेम सेल, जो अस्थि-मज्जा में पाई जाती हैं, शरीर में नई रक्त कोशिकाएं बनाने का काम करती हैं। रक्त कैंसर के इलाज में, मरीज की बीमार कोशिकाओं को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है और उसकी जगह स्वस्थ व्यक्ति से ली गई स्टेम-सेल्स को लगाया जाता है।
हालांकि, एक चिंता हमेशा बनी रही कि क्या इस तरह के ट्रांसप्लांट से नई कोशिकाओं में कैंसर जैसी बीमारियां पैदा हो सकती हैं। कुछ दुर्लभ मामलों (प्रत्येक 1,000 में से 1) में दान की गई कोशिकाएं मरीज में कैंसर का कारण बनती हैं। लेकिन इस नए अध्ययन ने दिखाया कि ऐसा बहुत कम होता है और ट्रांसप्लांट के बाद कोशिकाएं सामान्य रूप से काम करती हैं।
क्या कहती है रिसर्च?
सिएटल के फ्रेड हचिंसन कैंसर सेंटर की टीम ने उन मरीजों से संपर्क किया, जिन्होंने 7 से 46 साल पहले स्टेम-सेल ट्रांसप्लांट कराया था। 16 मरीजों और उनके दाताओं के खून के नमूने लेकर, उन्होंने उनमें म्यूटेशन की जांच की।
शोध से पता चला कि सभी दाताओं के खून में कुछ म्यूटेशन पहले से मौजूद थे, चाहे वे बच्चे ही क्यों न हों। हालांकि, ये म्यूटेशन बहुत ही कम संख्या में थे – लगभग हर 10 लाख डीएनए आधारों में केवल एक बदलाव।
जब टीम ने पुराने और नए नमूनों की तुलना की, तो पाया कि ट्रांसप्लांट के बाद भी म्यूटेशन की दर सामान्य ही रही। यानी, दाताओं और प्राप्तकर्ताओं दोनों में कोशिकाएं लगभग समान दर से बढ़ीं और नई म्यूटेशन बहुत कम दिखी।यह रिसर्च चिकित्सीय जगत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगी।
डॉ स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा