Homeस्नेह कुमार सिंह कुशवाहाअंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस:नारी शक्ति का जश्न और समकालीन चुनौतियाँ

अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस:नारी शक्ति का जश्न और समकालीन चुनौतियाँ

अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस:नारी शक्ति का जश्न और समकालीन चुनौतियाँ

अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस हर साल सितंबर महीने के चौथे रविवार को मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य समाज में बेटियों की महत्ता को समझाना, उनके प्रति हो रहे भेदभाव को समाप्त करना, और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना है। बदलते समाज और उभरती चुनौतियों के बीच, बेटियों की भूमिका पहले से अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। उनकी शिक्षा, स्वास्थ, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना आज के समाज की आवश्यकता है। वर्तमान समय में बेटियों के योगदान को सम्मानित करने के साथ ही उन्हें एक उज्ज्वल भविष्य प्रदान करना हम सभी की जिम्मेदारी है।

बेटी दिवस की आवश्यकता
पिछले कुछ दशकों में महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए हैं, लेकिन फिर भी समाज के कई हिस्सों में बेटियों के साथ भेदभाव और असमानता की समस्याएँ बनी हुई हैं। यह दिन बेटियों के महत्व और उनके प्रति समाज के नज़रिये में बदलाव लाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। बेटियाँ केवल एक परिवार की धरोहर ही नहीं, बल्कि एक पूरे समाज की शक्ति होती हैं। उनके विकास से समाज का विकास सुनिश्चित होता है।

समकालीन परिप्रेक्ष्य में बेटी दिवस की प्रासंगिकता
हाल के वर्षों में कई देश, भारत सहित, बेटियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून और योजनाएँ लेकर आए हैं। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएँ बेटियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने के लिए बनाई गई हैं। इसके साथ ही, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। इन योजनाओं ने समाज में बेटियों की स्थिति को सुधारने का काम किया है।

हालाँकि, महामारी के दौरान बेटियों के सामने कई नई चुनौतियाँ भी आईं। जैसे, कई गरीब परिवारों में बेटियों की शिक्षा पर असर पड़ा, और उन्हें घरेलू कामों में ज़्यादा शामिल किया गया। इसके अलावा, बाल विवाह के मामलों में भी वृद्धि देखने को मिली। इस प्रकार की घटनाओं ने यह दर्शाया कि हमें बेटी दिवस की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।

शिक्षा का महत्त्व
शिक्षा किसी भी व्यक्ति, विशेषकर बेटियों के लिए, सशक्तिकरण का सबसे प्रभावी माध्यम है। शिक्षा न केवल एक बेटी को आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि उसे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी करती है। पिछले कुछ वर्षों में बेटियों की शिक्षा पर कई सकारात्मक कदम उठाए गए हैं। भारत में विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार, मुफ्त शिक्षा और छात्रवृत्ति योजनाएँ, बेटियों के लिए सुलभता को बढ़ाने में सहायक रही हैं।

हालांकि, आज भी कई इलाकों में बेटियों की शिक्षा को परिवारिक और सामाजिक कारणों से रोका जाता है। बेटियों को बाल-विवाह से बचाना और उन्हें उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करना समाज का कर्तव्य है। आज की डिजिटल दुनिया में, बेटियों को डिजिटल स्किल्स में भी सक्षम बनाना उतना ही आवश्यक है ताकि वे हर क्षेत्र में प्रतियोगिता कर सकें।

नारी सशक्तिकरण और समकालीन चुनौतियाँ
बेटियों को सशक्त बनाने के लिए केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि उनके आत्मसम्मान और अधिकारों की रक्षा करना भी ज़रूरी है। विश्व भर में यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और लैंगिक असमानता की घटनाएँ अभी भी जारी हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण #MeToo आंदोलन है, जिसने विश्व स्तर पर महिलाओं और बेटियों की आवाज़ को मुखर किया। भारत में भी बेटियों के साथ होने वाले अपराधों में वृद्धि ने समाज के इस हिस्से पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।

नारी सशक्तिकरण का असली मतलब तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक कि बेटियों को अपने फैसले लेने की आज़ादी नहीं मिलती। वे केवल पारिवारिक जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं रह सकतीं, बल्कि उन्हें समाज के हर क्षेत्र में बराबर का मौका मिलना चाहिए। आर्थिक स्वतंत्रता और रोजगार में महिलाओं की भागीदारी का विस्तार होना ज़रूरी है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो सकें।

सामाजिक मान्यताओं में बदलाव की ज़रूरत
समाज में अब भी कुछ पुरानी धारणाएँ बेटियों के प्रति असमानता को बढ़ावा देती हैं। कई समाजों में आज भी बेटियों को केवल एक बोझ माना जाता है। दहेज प्रथा, बाल विवाह, और बेटियों के साथ भेदभाव जैसी प्रथाएँ अब भी कुछ जगहों पर प्रचलित हैं। इन पर अंकुश लगाना और समाज को बेटियों की क्षमता के प्रति जागरूक करना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

इसके लिए ज़रूरी है कि परिवार और समाज में बेटियों को समान सम्मान दिया जाए। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। हमें बेटियों के प्रति अपनी मानसिकता बदलनी होगी और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना होगा।

बेटी दिवस: एक वैश्विक परिप्रेक्ष्य
अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में मनाया जाता है। वैश्विक स्तर पर भी महिलाओं और बेटियों की स्थिति सुधारने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को अपने सतत विकास लक्ष्यों में शामिल किया है। विश्व भर में बेटियों को समान अवसर और अधिकार दिलाने के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं।

दक्षिण एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में, जहाँ बेटियों को अब भी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रखा जाता है, वहाँ इस दिशा में कई गैर-सरकारी संगठनों और सरकारी योजनाओं के माध्यम से कार्य किए जा रहे हैं।

बेटी दिवस: एक नई दिशा
बेटियों के प्रति समाज का नज़रिया बदलने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत ढांचा तैयार करना आवश्यक है। सरकारों, समाज और परिवारों को मिलकर बेटियों के प्रति एक सकारात्मक और सशक्त दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इस दिशा में बेटी दिवस एक महत्वपूर्ण कदम है, जो समाज को बेटियों के प्रति उनके दायित्वों की याद दिलाता है।

इस अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि बेटियों को समान अवसर और अधिकार प्रदान कर हम एक बेहतर और समान समाज का निर्माण करेंगे। बेटियाँ समाज का वह स्तंभ हैं, जो भविष्य को सुनहरा और समृद्ध बना सकती हैं। उनकी शिक्षा, सुरक्षा और सशक्तिकरण में निवेश करना वास्तव में समाज के उज्ज्वल भविष्य में निवेश करना है।


अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस समाज में बेटियों की महत्ता को समझने और उन्हें समान अवसर प्रदान करने का अवसर है। वर्तमान समय में, जब दुनिया तेजी से बदल रही है, बेटियों का सशक्तिकरण और उनकी सुरक्षा पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। चाहे वह शिक्षा हो, रोजगार हो, या सामाजिक सुरक्षा – हर क्षेत्र में बेटियों को बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। बेटियों को सम्मान देना और उन्हें सशक्त बनाना एक जिम्मेदारी है, जो केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है।
लेखक-डॉ स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा।
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