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Milak(Rampur)News हिंदी साहित्य के दीपस्तंभ- डॉ. चंद्रप्रकाश शर्मा की विद्वत्ता और विरासत

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हिंदी साहित्य के दीपस्तंभ- डॉ. चंद्रप्रकाश शर्मा की विद्वत्ता और विरासत

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मुख्य खबर (न्यूज़ रिपोर्ट)-

कलकत्ता, 19 अप्रैल 2025।
नेशनल एजुकेशन फोरम, कोलकाता की प्रतिष्ठित पत्रिका #Beyond_the_classrooms: #untold_stories के 64वें पृष्ठ पर प्रकाशित लेख ने एक बार फिर हिंदी साहित्य और शिक्षा जगत के एक प्रमुख स्तंभ, डॉ. चंद्रप्रकाश शर्मा की गरिमामयी उपलब्धियों और जीवन यात्रा पर प्रकाश डाला है।

हिंदी भाषा, साहित्य, और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति उनका योगदान अत्यंत उल्लेखनीय रहा है। डॉ. शर्मा न केवल एक अनुभवी शिक्षाविद हैं, बल्कि एक सशक्त लेखक, चिंतक और नीति-निर्माण में हिंदी के सशक्त प्रतिनिधि के रूप में भी जाने जाते हैं। वर्तमान में वह भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय में सलाहकार (हिंदी) के रूप में कार्यरत हैं, जहाँ वे नीतिगत दस्तावेजों में हिंदी के समावेश के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

डॉ. शर्मा की लेखनी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी व्यक्तिगत रूप से सराहा है, जो उनके लेखन की राष्ट्रीय चेतना और गहराई का प्रमाण है। उनका लेखन भारतीय दर्शन, वेद, पुराण, योग और विज्ञान के अद्भुत समन्वय को दर्शाता है। विशेष रूप से अमृत की अवधारणा पर आधारित उनके विश्लेषणात्मक लेख को पाठकों व समीक्षकों ने विशेष प्रशंसा दी है।

शैक्षणिक क्षेत्र में भी डॉ. शर्मा का योगदान प्रेरणास्पद रहा है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड द्वारा प्रिंसिपल के पद पर चयनित होने के बाद, उन्होंने हिंदी व्याख्याता के रूप में भी अनेक वर्षों तक सेवाएं दीं। उनके शिक्षण में न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक शिक्षाओं का भी गहन समावेश रहा।

सेवानिवृत्ति के उपरांत भी डॉ. शर्मा पूरी सक्रियता से साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में संलग्न हैं। वह विभिन्न सेमिनार, गोष्ठियों और लेखन मंचों पर निरंतर सहभागी रहते हैं। उनके कार्य और विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।


डॉ. चंद्रप्रकाश शर्मा जैसे विद्वान उन दुर्लभ व्यक्तित्वों में से हैं, जो अपने विचार, कर्म और आचरण से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं। आज जब भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिंदी, को वैश्विक पहचान दिलाने की आवश्यकता है, ऐसे में डॉ. शर्मा जैसे साहित्यिक सेनानी हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि भारतीय ज्ञान परंपरा अभी जीवित है और आने वाले समय में और भी उज्जवल होगी। उनका जीवन स्वयं एक जीवंत ग्रंथ है, जिससे देश के युवा बहुत कुछ सीख सकते हैं।

रिपोर्ट-डॉ स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा।

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