Homeस्नेह कुमार सिंह कुशवाहासुभाष चन्द्र बोस-पराक्रम के प्रतीक एवं उनकी वैश्विक प्रासंगिकता

सुभाष चन्द्र बोस-पराक्रम के प्रतीक एवं उनकी वैश्विक प्रासंगिकता

सुभाष चन्द्र बोस-पराक्रम के प्रतीक एवं उनकी वैश्विक प्रासंगिकता

सुभाष चन्द्र बोस,जिन्हें “नेताजी” के नाम से जाना जाता है,वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पराक्रमी योद्धा एवं महानायक थे।उन्हें ‘नेताजी’ की उपाधि जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर ने दी थी,वहीं “देश नायक” की उपाधि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने दी थी।उनकी जीवन यात्रा साहस, बलिदान और अडिग संकल्प की मिसाल है। 21वीं सदी में भी उनका व्यक्तित्व और विचार भारतीयों को प्रेरित करते हैं। भारत सरकार ने उनकी जयंती, 23 जनवरी, को “पराक्रम दिवस” के रूप में घोषित किया है, जो उनके असाधारण योगदान और अद्वितीय नेतृत्व को सच्ची श्रद्धांजलि है।

सुभाष चन्द्र बोस का जीवन और उनके आदर्श-

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ। बचपन से ही उनमें नेतृत्व और राष्ट्रप्रेम की भावना थी। जब उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.सी.एस.) की परीक्षा उत्तीर्ण की, तो इसे छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का उनका निर्णय उनकी अद्वितीय देशभक्ति को दर्शाता है।

बोस का मानना था कि भारत को स्वतंत्रता केवल बलिदान और संघर्ष से ही मिल सकती है। उन्होंने कांग्रेस के माध्यम से राजनीति की शुरुआत की, लेकिन उनकी सोच महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन से अलग थी। गांधीजी की नीति शांतिपूर्ण सत्याग्रह पर आधारित थी, जबकि सुभाष चन्द्र बोस सशस्त्र क्रांति के समर्थक थे।

गांधीजी और सुभाष चन्द्र बोस-मतभेद और सम्मान-

सुभाष चन्द्र बोस और महात्मा गांधी के बीच वैचारिक मतभेद थे, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर वे एक-दूसरे का अत्यधिक सम्मान करते थे। बोस गांधीजी को “राष्ट्रपिता” कहकर संबोधित करते थे और मानते थे कि गांधीजी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। हालांकि, उनका मानना था कि केवल अहिंसा से स्वतंत्रता प्राप्त करना संभव नहीं है।

1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में, सुभाष चन्द्र बोस ने गांधीजी के समर्थन प्राप्त उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया के खिलाफ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीता। लेकिन गांधीजी के साथ उनके विचारों के टकराव के कारण उन्हें कांग्रेस से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बावजूद, उन्होंने गांधीजी के प्रति आदर बनाए रखा।

आज़ाद हिंद फौज का गठन-

कांग्रेस से अलग होने के बाद, सुभाष चन्द्र बोस ने “फॉरवर्ड ब्लॉक” की स्थापना की और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान “आज़ाद हिंद फौज” (Indian National Army) का गठन किया। उन्होंने जापान और जर्मनी से सहयोग लेकर इस सेना को संगठित किया और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की योजना बनाई।

उनका नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” हर भारतीय के दिल में जोश भर देता है।आजादी का बिगुल फूँकने के लिए उन्होंने “दिल्ली चलो” का नारा दिया।उन्होंने “जय हिंद” को राष्ट्रीय अभिवादन के रूप में प्रचारित किया, जो आज भी भारतीय सेना और नागरिकों के बीच गर्व का प्रतीक है।

पराक्रम और मानवता का संदेश-

सुभाष चन्द्र बोस का जीवन पराक्रम और मानवीयता का प्रतीक है। उन्होंने कभी भी किसी जाति,धर्म या समुदाय के आधार पर भेदभाव नहीं किया। उनके लिए हर भारतीय समान था। उन्होंने आज़ाद हिंद फौज में महिलाओं को भी समान स्थान दिया और “रानी झांसी रेजीमेंट” का गठन किया। यह उस समय के समाज के लिए क्रांतिकारी कदम था।

उनके विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता-
सुभाष चन्द्र बोस के विचार और आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं-

राष्ट्रवाद और एकता-

बोस का राष्ट्रवाद निस्वार्थ और समर्पित था। आज जब समाज में विभाजनकारी शक्तियां सक्रिय हैं, उनका दृष्टिकोण हमें एकजुटता और सहिष्णुता की सीख देता है।

सशक्त नेतृत्व-

उनके नेतृत्व की स्पष्टता और दूरदृष्टि आज के नेताओं के लिए एक आदर्श है। उनके विचार हमें सिखाते हैं कि सही निर्णय लेने के लिए साहस और निष्ठा की आवश्यकता होती है।

युवा शक्ति का महत्व-

सुभाष चन्द्र बोस युवाओं को देश की शक्ति मानते थे। उनके अनुसार, अगर युवा अपनी ऊर्जा और प्रतिभा का सही दिशा में उपयोग करें, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।

आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन-

बोस का आत्मनिर्भर भारत का सपना आज भारत सरकार के “आत्मनिर्भर भारत” अभियान में झलकता है। यह भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने की दिशा में प्रेरणा देता है।

महिला सशक्तिकरण-

रानी झांसी रेजीमेंट के गठन से उन्होंने महिलाओं को यह संदेश दिया कि वे भी देश के लिए लड़ने और नेतृत्व करने में सक्षम हैं।

पराक्रम दिवस का महत्व-

सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाना भारत सरकार का एक सराहनीय प्रयास है। यह दिन हमें उनके बलिदान और साहस की याद दिलाता है और प्रेरित करता है कि हम अपने देश के लिए कुछ बड़ा करने का संकल्प लें। यह न केवल उनके योगदान को सम्मान देता है, बल्कि उनकी शिक्षाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम भी है।

सुभाष चन्द्र बोस का जीवन हमें बताता है कि जब तक हमारे भीतर अपने देश के प्रति सच्ची निष्ठा और समर्पण है, तब तक हम किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं। उनका संघर्ष, बलिदान और विचार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का गौरवपूर्ण अध्याय है।

आज, जब हम सुभाष चन्द्र बोस के विचारों को अपनाने की बात करते हैं, तो हमें उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए। उनकी शिक्षा हमें सिखाती है कि पराक्रम, मानवता और निष्ठा से ही एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण संभव है।

“जय हिंद!”

लेखक-डॉ स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा।

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