माँ दुर्गा शक्ति का प्रतीक है। इस दौरान देवी दुर्गा ने महाबली दैत्य महिषासुर से नौ दिन तक प्रचंड युद्ध किया और दसवें दिन उसे मारकर विजय प्राप्त की। शारदीय नवरात्रि का आयोजन सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के उद्देश्य से किया जाता है, जबकि चैत्र नवरात्रि आध्यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनाई जाती है। आश्विन माह से शरद ऋतु का आगमन माना जाता है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।
महिषासुर का जन्म रंभासुर और महिषी (भैंस) के संयोग से हुआ था, जिसके कारण वह आधा मनुष्य और आधा भैंसा था। उसने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि उसकी मृत्यु देव दानव,या मानव के हाथों नहीं हो सकती, केवल एक स्त्री ही उसे मार सकती है। महिषासुर को विश्वास था कि स्त्री उसे कभी पराजित नहीं कर पाएगी। वरदान प्राप्त करने के बाद उसने देवताओं को युद्ध में पराजित कर स्वर्ग से बाहर कर दिया। पराजित देवता, देवराज इंद्र सहित, भगवान शिव और विष्णु के पास सहायता के लिए गए।
शिव और विष्णु जानते थे कि महिषासुर का अंत केवल स्त्री के हाथों ही संभव है, इसलिए उन्होंने सभी देवताओं की सामूहिक शक्ति से एक तेजोमय देवी की उत्पत्ति करने का निर्णय लिया। भगवान शिव ने उस देवी को त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, वायु ने धनुष-बाण और हिमालय ने सिंह प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवताओं ने भी अपने अस्त्र-शस्त्र और शक्तियाँ देवी को दीं। सभी देवताओं की शक्ति से सुसज्जित देवी का स्वरूप अद्भुत था।
देवी दुर्गा ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस विजय के कारण उन्हें ‘महिषासुर मर्दिनी’ के नाम से जाना गया।
ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान राम ने रावण को हराने के लिए नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा का व्रत किया और दसवें दिन विजय प्राप्त की। वहीं, द्वापर युग में महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों ने भी भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा की उपासना की थी, जिससे विजयश्री प्राप्त हो।