Homeस्नेह कुमार सिंह कुशवाहाशांति का दीपक- बुद्ध का प्रकाश और आज की दुनिया

शांति का दीपक- बुद्ध का प्रकाश और आज की दुनिया

शांति का दीपक- बुद्ध का प्रकाश और आज की दुनिया


नफरत की आंधियों में भी जो करुणा का दीप जलाए,
वह बुद्ध ही हैं जो संसार को प्रेम की राह दिखाए।


बुद्ध जयंती केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह आत्ममंथन और आध्यात्मिक जागरूकता का पर्व है। इस दिन हम केवल गौतम बुद्ध की पूजा नहीं करते, बल्कि उनके जीवन और शिक्षाओं को अपने भीतर उतारने का प्रयास करते हैं। वर्तमान समय में जब मानवता अनेक संकटों से जूझ रही है, बुद्ध के विचार पुनः प्रासंगिक और आवश्यक हो गए हैं।


महात्मा बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 563 में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। एक समृद्ध और सुखी राजपरिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने जीवन के वास्तविक दुःखों को समझा। रोग, शोक, वृद्धावस्था और मृत्यु ने उनके अंतर्मन को झकझोर दिया। 29 वर्ष की आयु में उन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग कर सत्य की खोज में संन्यास धारण किया।

छः वर्षों की कठोर साधना के बाद उन्होंने बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए आत्मबोध प्राप्त किया और ‘बुद्ध’ कहलाए। इसके बाद उन्होंने शेष जीवन जनकल्याण के लिए शिक्षाएँ देते हुए बिताया। उनका महापरिनिर्वाण ईसा पूर्व 483 में कुशीनगर में हुआ।


बुद्ध की शिक्षाएँ-जीवन का दर्पण :-

बुद्ध ने जो उपदेश दिए, वे जीवन के यथार्थ से जुड़े थे। उन्होंने किसी ईश्वर या परंपरा की पूजा पर ज़ोर नहीं दिया, बल्कि व्यक्ति के भीतर अंतर्निहित शक्ति और विवेक को जाग्रत करने पर बल दिया।

चार आर्य सत्य (Four Noble Truths)-

संसार में दुःख है।

दुःख का कारण तृष्णा है।

तृष्णा का अंत ही दुःख का अंत है।

दुःख के नाश का मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।


अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path)-
यह आठ बिंदुओं वाला मार्ग है जो जीवन के हर पहलू — विचार, कर्म, वाणी और ध्यान को संतुलित करता है। इसमें सम्यक दृष्टि, संकल्प, वाक्, कर्म, आजीविका, प्रयास, स्मृति और समाधि शामिल हैं।

मध्यम मार्ग (Middle Path)-
बुद्ध ने जीवन के दो अतियों भोग और कठोर तप,दोनों से बचकर एक मध्यम मार्ग अपनाने की सलाह दी।


विपश्यना ध्यान- बुद्ध का आत्म-ज्ञान का विज्ञान :-

विपश्यना, बुद्ध द्वारा प्रतिपादित वह ध्यान विधि है जो आत्मनिरीक्षण और मानसिक शुद्धि का एक वैज्ञानिक तरीका है। संस्कृत शब्द ‘विपश्यना’ का अर्थ होता है — “जैसा है, वैसा देखना”।

बुद्ध ने यह ध्यान विधि स्वयं बोधिवृक्ष के नीचे उपयोग में लाकर आत्मज्ञान प्राप्त किया था। उन्होंने पाया कि संसार की समस्त पीड़ाओं की जड़ हमारी प्रतिक्रिया-प्रवृत्ति (Reaction Pattern) में है हम सुख को पकड़ना चाहते हैं और दुःख से भागना चाहते हैं। यही तृष्णा, द्वेष और मोह हमारे दुखों का मूल कारण हैं।

विपश्यना की विशेषताएँ-

यह किसी संप्रदाय, जाति या धार्मिक विश्वास से बंधी नहीं होती।

इसमें श्वास के अवलोकन से शुरू होकर शरीर की संवेदनाओं की गहराई से जांच की जाती है।

यह मन को वर्तमान क्षण में टिकने की आदत सिखाती है, जिससे क्रोध, लालच, भय और भ्रम जैसे मानसिक विकार धीरे-धीरे मिटने लगते हैं।


आज विश्वभर में विपश्यना केन्द्र लाखों लोगों को मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान कर रहे हैं। भारत में सत्यनारायण गोयनका जी द्वारा पुनर्प्रचारित यह विधा अब चिकित्सा, शिक्षा और जेल सुधारों तक में उपयोग की जा रही है।


वर्तमान समय में बुद्ध की प्रासंगिकता-

मानसिक स्वास्थ्य और तनाव-

बुद्ध की ध्यान विधियाँ और उनके विचार आज के तनावपूर्ण जीवन में मानसिक सुकून का एक प्रभावी उपाय बनकर उभरे हैं।


सामाजिक सौहार्द और सहिष्णुता-
जब समाज धर्म, जाति और राजनीति के नाम पर बंट रहा है, बुद्ध का समदर्शी दृष्टिकोण एकजुटता की राह दिखाता है।

पर्यावरण और जीवदया-

बुद्ध की अहिंसा की भावना केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं, बल्कि पेड़-पौधे और जानवरों तक फैली हुई थी। आज की पर्यावरणीय आपदा में यह दृष्टि अत्यंत प्रासंगिक है।

न्याय और समता-
बुद्ध ने छुआछूत, ऊँच-नीच और लिंग भेद को नकारते हुए सभी को ध्यान व धर्म का समान अधिकार दिया — यह आज भी सामाजिक न्याय की बुनियाद बन सकता है।


वैश्विक शांति का संदेश-

जब विश्व युद्ध, हिंसा और आतंकवाद के कगार पर है, बुद्ध का करुणा और अहिंसा का संदेश वैश्विक कूटनीति में नया आयाम जोड़ सकता है।

गौतम बुद्ध केवल एक धार्मिक महापुरुष नहीं थे, वे एक क्रांतिकारी विचारक, एक आध्यात्मिक वैज्ञानिक और मानव मन के गहरे ज्ञाता थे। उनकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रभावशाली हैं जितनी 2500 वर्ष पहले थीं। उन्होंने आत्मानुशासन, करुणा, विवेक और ध्यान के माध्यम से जीवन को सरल, शांत और सार्थक बनाने की राह दिखाई।

यदि हम आज के समय में बुद्ध की शिक्षाओं को आत्मसात करें,विशेषकर विपश्यना जैसे ध्यान की विधियों को अपनाएँ,तो न केवल व्यक्तिगत जीवन में शांति लायी जा सकती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक करुणामयी समाज की स्थापना की जा सकती है।


हर दिल में एक बुद्ध बसाना होगा,
अंधेरों में खुद को जलाना होगा।
करुणा से जो दुनिया जीती जाती है,
वो दीप फिर से जगमगाना होगा।

डॉ-स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा।

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