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विश्व पृथ्वी दिवस – ज़हर बनती जा रही हवा, जल और ज़मीन – क्या अब भी चुप रहेंगे?

विश्व पृथ्वी दिवस –
ज़हर बनती जा रही हवा, जल और ज़मीन – क्या अब भी चुप रहेंगे?

ज़मीं अगर रूठ गई तो आसमां क्या करेगा,
जहाँ नहीं बचेगा तो इंसान क्या करेगा।
संभाल लो इस धरती को अभी से दोस्तों,
वरना पछताने से फिर क्या फायदा होगा।

हर वर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व पृथ्वी दिवस न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने का अवसर है, बल्कि यह मानव जाति को उसकी जिम्मेदारियों की याद भी दिलाता है। यह दिवस हमें यह सोचने पर विवश करता है कि हम जिस पृथ्वी पर जीवन जीते हैं, क्या उसका संरक्षण करना हमारा कर्तव्य नहीं है? यह लेख पृथ्वी दिवस के महत्व, वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों, समाधानात्मक प्रयासों तथा भविष्य की दिशा को संपादकीय दृष्टिकोण के साथ विश्लेषित करता है।


पृथ्वी दिवस का इतिहास और उद्देश्य-

पृथ्वी दिवस की शुरुआत वर्ष 1970 में अमेरिका में एक पर्यावरणीय आंदोलन के रूप में हुई थी, जब लाखों लोगों ने प्रदूषण, जैव विविधता के नुकसान और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाई। इसके पीछे प्रमुख व्यक्ति थे अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन। आज यह दिवस वैश्विक आंदोलन का रूप ले चुका है, जिसमें 194 से अधिक देश शामिल हैं।

इसका मुख्य उद्देश्य है लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना, वैश्विक स्तर पर टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना, और सभी को यह समझाना कि पृथ्वी केवल मनुष्य की नहीं, बल्कि सभी जीव-जंतुओं की भी साझा धरोहर है।

आज की पर्यावरणीय चुनौतियाँ-

आज पृथ्वी अनेक गंभीर संकटों से जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, जंगलों की कटाई, प्लास्टिक प्रदूषण, जैव विविधता का क्षरण, और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हमारी सबसे बड़ी चिंताएं हैं। औद्योगिक विकास और उपभोक्तावादी जीवनशैली ने प्रकृति के साथ असंतुलन पैदा कर दिया है।

उदाहरण के लिए, आर्कटिक में पिघलते ग्लेशियर, अमेजन वर्षावनों की अंधाधुंध कटाई, भारत में लगातार गिरता जलस्तर, और वायु प्रदूषण से ग्रस्त शहर – ये सब संकेत हैं कि हम एक गंभीर संकट की ओर बढ़ रहे हैं।


मानव और प्रकृति का संबंध-

टूटता ताना-बाना
मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता अत्यंत पुरातन और गहरा है, परंतु आधुनिक सभ्यता ने इसे कहीं न कहीं भुला दिया है। हम भूल गए हैं कि पृथ्वी हमें केवल रहने की जगह नहीं देती, बल्कि हमारी जीवनशैली, स्वास्थ्य और भविष्य भी उसी पर निर्भर है। अगर हम प्रकृति के साथ संतुलन नहीं बनाएंगे, तो इसका प्रभाव केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी संकट भी उत्पन्न होंगे।


क्या कर सकते हैं आप और हम ? —

समाधान की दिशा में कदम
विश्व पृथ्वी दिवस केवल भाषणों या प्रतीकात्मक गतिविधियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यह एक व्यक्तिगत और सामूहिक प्रतिबद्धता का दिन बनना चाहिए।

कुछ प्रभावी कदम निम्नलिखित हैं-

✍️पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण (Reuse and Recycle) को जीवन का हिस्सा बनाना।

✍️स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा को अपनाना।

✍️पेड़ लगाना और वनों की रक्षा करना।

✍️ प्लास्टिक के उपयोग को कम करना और सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पाबंदी लगाना।

✍️स्थानीय और टिकाऊ वस्तुओं का उपभोग करना।

✍️जल संरक्षण और ऊर्जा की बचत को व्यवहार में लाना।

सरकारों को भी चाहिए कि वे पर्यावरणीय नीतियों को गंभीरता से लागू करें, और हरित निवेश (Green Investment) को बढ़ावा दें।

केवल दिवस नहीं, दिशा हो यह-
पृथ्वी दिवस को महज एक दिन तक सीमित करना हमारे प्रयासों को कमजोर कर देता है। पर्यावरण संरक्षण कोई सामाजिक रिवाज नहीं है, यह एक नैतिक उत्तरदायित्व है।
आज जरूरत है कि यह दिन हमारे सोच में परिवर्तन लाए—घर से लेकर नीति निर्माण तक, शिक्षण से लेकर तकनीक तक, हर स्तर पर।

प्रकृति हमें लगातार दे रही है चेतावनी-

ग्लोबल वार्मिंग,आपदाओं की आवृत्ति और संसाधनों की घटती उपलब्धता इसके संकेत हैं। अगर हमने अभी भी जागरूक निर्णय नहीं लिए, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।

मीडिया, शिक्षा और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण संरक्षण केवल भाषणों का विषय न रहे, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के व्यवहार में उतरे।

विश्व पृथ्वी दिवस हमें यह सोचने का अवसर देता है कि हम अपनी इस एकमात्र पृथ्वी के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं। यह केवल उत्सव नहीं, एक चेतावनी है। यदि हम अपनी आदतें नहीं बदलेंगे, तो प्रकृति स्वयं हमें बदल देगी—कठोर तरीके से। आइए, इस पृथ्वी दिवस पर संकल्प लें कि हम अपने छोटे-छोटे कार्यों से इस धरती को फिर से हरा-भरा, स्वच्छ और सुरक्षित बनाएंगे। क्योंकि अंततः, पृथ्वी नहीं बचेगी तो कुछ भी नहीं बचेगा।

लेखक-डॉ स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा।

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