Homeस्नेह कुमार सिंह कुशवाहापंडित नेहरू: स्वतंत्र भारत की नींव और समकालीन प्रासंगिकता

पंडित नेहरू: स्वतंत्र भारत की नींव और समकालीन प्रासंगिकता

पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। नेहरू का व्यक्तित्व और उनके योगदान भारतीय इतिहास में अतुलनीय हैं। वे एक दूरदर्शी नेता, कुशल राजनेता, और समाज सुधारक थे। उनके नेतृत्व में भारत ने अपने स्वतंत्रता आंदोलन को सफलतापूर्वक पूरा किया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक सशक्त और प्रगतिशील राष्ट्र बनने की दिशा में कदम बढ़ाए।

आज के समसामयिक परिप्रेक्ष्य में नेहरू की नीतियों और उनके विचारों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है, क्योंकि उनकी विचारधारा और दृष्टिकोण आज भी भारतीय राजनीति, समाज, और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। यह लेख नेहरू के योगदान और उनके द्वारा रखी गई नींव की वर्तमान प्रासंगिकता पर केंद्रित है।

नेहरू का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की स्थापना में है। उन्होंने भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता को मूलभूत सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। नेहरू का मानना था कि एक विविधतापूर्ण देश जैसे भारत में धर्मनिरपेक्षता ही एकता का सूत्र हो सकती है।

वर्तमान समय में जब देश में सांप्रदायिकता और धार्मिक ध्रुवीकरण की घटनाएँ बढ़ रही हैं, नेहरू का धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण प्रासंगिक हो जाता है। वे मानते थे कि सरकार का धर्म से अलग रहना जरूरी है ताकि सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार मिल सके। उनकी यह विचारधारा वर्तमान में भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सामाजिक ताने-बाने को सुरक्षित रखने में सहायक होती है।

नेहरू ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आधुनिक सोच को भारतीय समाज में प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा था, “भविष्य उन्हीं का होगा जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए करेंगे।” इसी सिद्धांत के तहत उन्होंने भारत में विज्ञान, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई संस्थानों की स्थापना की, जैसे कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)।

आज जब देश डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर निर्भरता बढ़ी है, नेहरू की इस सोच की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। उनका दृष्टिकोण हमें यह याद दिलाता है कि प्रगति का मार्ग वैज्ञानिक सोच और नवाचार के बिना संभव नहीं है।

नेहरू ने स्वतंत्रता के बाद वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका को परिभाषित किया। उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव रखी, जिससे भारत ने अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रहे शीत युद्ध में किसी भी गुट का हिस्सा बनने से इनकार किया। यह नीति भारत को वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र पहचान दिलाने में सफल रही।

जब विश्व फिर से ध्रुवीकृत हो रहा है और महाशक्तियाँ अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर रही हैं, नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति एक बार फिर से प्रासंगिक होती दिखाई देती है। उनकी यह नीति आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में संतुलन बनाए रखने और भारत को स्वतंत्र रूप से अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाती है।

नेहरू ने स्वतंत्रता के बाद भारत के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों की भागीदारी सुनिश्चित की गई। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया और इसे देश के औद्योगिकीकरण का एक प्रमुख आधार बनाया।

वर्तमान समय में, जब भारत तेजी से आर्थिक सुधारों की ओर बढ़ रहा है और निजीकरण की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, नेहरू के मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल की प्रासंगिकता पर बहस होती है। नेहरू का यह मॉडल सामाजिक समानता और समावेशी विकास का समर्थक था, जो आज भी ग्रामीण भारत और कमजोर वर्गों की आर्थिक स्थिति सुधारने में सहायक हो सकता है।

नेहरू का मानना था कि एक प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। उन्होंने भारतीय समाज में वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगतता को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार किए। उनकी पहल पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई।

आज जब भारत शिक्षा और कौशल विकास में सुधार के लिए नए प्रयास कर रहा है, नेहरू की यह सोच प्रेरणादायक साबित होती है। वे शिक्षा को केवल जानकारी का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता का साधन मानते थे।

हालांकि नेहरू के नेतृत्व और विचारधारा की प्रशंसा की जाती है, लेकिन उनके शासनकाल की कुछ नीतियों की आलोचना भी हुई है। विशेष रूप से, कश्मीर समस्या का समाधान न कर पाना और चीन के साथ 1962 का युद्ध उनकी कमजोरियों में गिना जाता है। इसके अलावा, उन्होंने कृषि सुधारों पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना औद्योगिकीकरण पर दिया, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

जब भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ रही हैं, इन मुद्दों का उल्लेख किया जाना महत्वपूर्ण है। यह वर्तमान और भविष्य के नेताओं को यह समझने में मदद करता है कि राजनीतिक नीतियों का संतुलन और दूरदर्शिता कितनी महत्वपूर्ण है।

नेहरू की नीतियों और विचारधारा को लेकर आज भी राजनीति में चर्चा होती है। कुछ लोग उनकी आलोचना करते हैं और उन्हें भारत की आर्थिक और विदेश नीति की चुनौतियों का कारण मानते हैं, जबकि अन्य उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता और प्रगतिशील नेता के रूप में देखते हैं।

हालांकि, यह स्पष्ट है कि उनकी धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक मूल्य, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण आज भी हमारे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण हैं। उनकी नीतियाँ और दृष्टिकोण हमें यह सिखाते हैं कि एक मजबूत और समावेशी राष्ट्र बनाने के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण और विविधता में एकता की भावना आवश्यक है।


पंडित जवाहरलाल नेहरू का योगदान न केवल स्वतंत्रता संग्राम में था, बल्कि उन्होंने स्वतंत्र भारत की नींव भी मजबूत की। उनके दृष्टिकोण, नीतियाँ, और विचारधारा आज भी हमारे देश की सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक संरचना में गहराई से समावेशित हैं।
जब भारत एक उभरती हुई महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है, नेहरू की दूरदर्शिता और उनके विचारों का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है। उनके सिद्धांत और दृष्टिकोण हमें यह याद दिलाते हैं कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, और वैज्ञानिक सोच एक सशक्त और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं।

इस प्रकार, नेहरू के विचार और उनकी दृष्टि आज भी एक दिशा-निर्देशक के रूप में कार्य कर सकते हैं, जो हमें एक प्रगतिशील और समावेशी समाज की ओर ले जाने में सहायक होंगे।

लेखक-डॉ स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा।

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