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डॉ. भीमराव आंबेडकर- सामाजिक न्याय के अग्रदूत की वर्तमान भारत और विश्व में प्रासंगिकता

डॉ. भीमराव आंबेडकर- सामाजिक न्याय के अग्रदूत की आज के भारत और विश्व में प्रासंगिकता

डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय समाज के उन महान चिंतकों और सुधारकों में से एक थे, जिन्होंने न केवल भारत की सामाजिक संरचना को चुनौती दी बल्कि एक समतामूलक समाज की नींव भी रखी। एक विद्वान अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता, राजनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में आंबेडकर का योगदान आज भी भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत है। इस लेख में हम उनके विचारों की वर्तमान भारत और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता का विश्लेषण करेंगे।

मुख्य जीवन घटनाएँ एवं योगदान-
भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक स्थान पर एक दलित (महार) परिवार में हुआ था। जातिगत भेदभाव ने उनके बचपन को कटु अनुभवों से भर दिया, लेकिन उन्होंने शिक्षा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया।

उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और फिर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय गए, जहां उन्होंने 1915 में राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने 1917 में कोलंबिया से ही “The Evolution of Provincial Finance in British India” विषय पर पीएच.डी. (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की।

इसके बाद वे इंग्लैंड के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए, जहाँ उन्होंने D.Sc. (Doctor of Science) की डिग्री प्राप्त की, जो उस समय अत्यंत दुर्लभ और कठिन मानी जाती थी। साथ ही उन्होंने ग्रेज़ इन से बार-एट-लॉ की उपाधि भी प्राप्त की, जिससे वे विधिशास्त्र के क्षेत्र में भी दक्ष बने।

डॉ. आंबेडकर की ये बहुस्तरीय शैक्षिक उपलब्धियाँ उन्हें न केवल भारत के, बल्कि विश्व के श्रेष्ठ विद्वानों की श्रेणी में स्थापित करती हैं। उन्होंने ज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का औजार बनाया और इसी बौद्धिक ताकत के बल पर वे भारतीय संविधान के शिल्पी बने।

भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में डॉ. आंबेडकर ने समानता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय को संविधान की आत्मा में स्थापित किया। उन्होंने अस्पृश्यता, जातिवाद, लैंगिक भेदभाव और आर्थिक विषमता के विरुद्ध आजीवन संघर्ष किया।

समाज सुधारक के रूप में भूमिका-
आंबेडकर ने केवल कानून और संविधान तक ही अपने विचारों को सीमित नहीं रखा। उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’, ‘मूकनायक’ और ‘जनता’ जैसे मंचों के माध्यम से सामाजिक जागरूकता फैलाई। उनके आंदोलनों – महाड सत्याग्रह, कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन आदि – ने दलितों को सामाजिक बराबरी की मांग करने का साहस दिया।


आधुनिक भारत में प्रासंगिकता-

जातीय असमानता की जड़ें अभी भी मजबूत–

भारत में आज भी जातीय भेदभाव की घटनाएं सामने आती हैं। डॉ. आंबेडकर का यह कथन कि “राजनीतिक स्वतंत्रता तब तक अधूरी है जब तक सामाजिक और आर्थिक समानता प्राप्त नहीं होती,” आज भी प्रासंगिक है।

शैक्षिक सशक्तिकरण का महत्व –
उन्होंने शिक्षा को सामाजिक मुक्ति का सबसे बड़ा हथियार बताया। आज भी शिक्षा ही वंचित वर्गों को सशक्त बनाने का मार्ग है।

संविधान की रक्षा का प्रश्न –

जिस संविधान की रचना में आंबेडकर का सबसे बड़ा योगदान है, उसकी मूल भावना – धर्मनिरपेक्षता, समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – पर कई बार प्रश्नचिह्न लगते हैं। ऐसी स्थितियों में आंबेडकर की चेतावनियाँ और विचार लोकतंत्र की रक्षा के लिए मार्गदर्शक हैं।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में आंबेडकर की प्रासंगिकता-

मानवाधिकार और सामाजिक न्याय –
आज जब दुनिया भर में नस्लवाद, लैंगिक भेदभाव और सामाजिक असमानताएं गहरी हो रही हैं, आंबेडकर का सामाजिक न्याय का दृष्टिकोण वैश्विक मंचों पर भी प्रासंगिक हो जाता है। अमेरिका में अश्वेतों के अधिकारों के लिए संघर्ष और भारत में दलितों के अधिकारों के लिए आंबेडकर का संघर्ष एक समानांतर कथा बनाते हैं।

शांति और सहअस्तित्व की वकालत –
आंबेडकर ने बुद्ध के सिद्धांतों को अपनाया और शांतिपूर्ण सामाजिक क्रांति का रास्ता चुना। यह विचारधारा आज के हिंसक और ध्रुवीकृत समाजों के लिए मार्गदर्शन कर सकती है।

अर्थशास्त्र में योगदान –

आंबेडकर ने भारत की जल नीति, रिज़र्व बैंक की स्थापना, और श्रमिक कानूनों में अहम भूमिका निभाई। ये विषय वैश्विक विकास एजेंडा में आज भी प्राथमिकता पर हैं।

डॉ. आंबेडकर केवल एक “दलित नेता” नहीं थे, वे एक राष्ट्रीय और वैश्विक विचारक थे। उनकी सबसे बड़ी विरासत यह है कि उन्होंने भारत को एक ऐसा संविधान दिया जो बहुलतावाद, विविधता और समावेशिता की नींव पर टिका है। आज जब भारत और दुनिया कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है, आंबेडकर का दृष्टिकोण और उनके मूल्य न केवल समाधान के रास्ते सुझाते हैं, बल्कि चेतावनी भी देते हैं कि अगर समाज असमानता, अन्याय और भेदभाव को अनदेखा करेगा, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है।

डॉ. भीमराव आंबेडकर का जीवन और विचारधारा आज के भारत और विश्व में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। वे केवल अतीत की धरोहर नहीं हैं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए दिशा दिखाने वाले प्रकाशस्तंभ हैं। हमें उनकी शिक्षाओं को न केवल स्मरण करना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने आचरण और नीतियों में लागू कर एक समतामूलक, न्यायपूर्ण और समावेशी समाज की दिशा में बढ़ना चाहिए।

लेखक-डॉ स्नेह कुमार सिंह कुशवाहा।

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